मै एक गुरेज़ाँ लम्हा हूँ
आयाम के अफ़सून खाने में
मै एक तड़पता कतरा हूँ
मसरूफ़-ऐ-सफर जो रहता है
माज़ी की सुराही के दिल में
मुस्तकबिल के पैमाने में
आयाम के अफ़सून खाने में
मै एक तड़पता कतरा हूँ
मसरूफ़-ऐ-सफर जो रहता है
माज़ी की सुराही के दिल में
मुस्तकबिल के पैमाने में
मै सोता हूँ और जागता हूँ
और जाग के फ़िर सो जाता हूँ
सदियों का पुराना खेल हूँ मै
मै मर के अमर हो जाता हूँ…
और जाग के फ़िर सो जाता हूँ
सदियों का पुराना खेल हूँ मै
मै मर के अमर हो जाता हूँ…
-Ali Sardar Zafri
5 comments:
Adi...
L6ve...
=)
m liking that smile on ur face n the question too...
he he.....
:)
what's the link to ur wordpress blog btw?
m sorry :( i forgot :((
wah Taj wah, subhan allah :)
When is the next post happening?
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