Tuesday, December 07, 2010

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे, हज़ारों तरफ से निशाने लगे

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ से निशाने लगे

हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे

घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते आते ज़माने लगे

कभी बस्तियां दिल की यूँ भी बसीं
दुकाने खुलीं, कारखाने लगे

वहीँ ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

पढाई लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे

-बशीर बद्र

No comments: