अभी इस तरफ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ
मेरा लफ्ज़ लफ्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ
मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब् का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
अगर आसमान की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-कयाम हो
तो मैं मोतियों की दूकान से तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ
[इज़्न-ए-कायम= command to stop]
कई अजनबी तेरी राह के मेरे पास से यूं गुज़र गए
जिन्हें देख कर ये तड़प हुई तेरा नाम ले के पुकार लूँ
-बशीर बद्र
3 comments:
Waah Waah!! Bahut hi Umda kalam hai sahab.
bahut hi sundar koi shab nahi hai taareef ke liye ...
Shruti .....
khoobsurat :)
Post a Comment