मुझे याद है
मेरी बस्ती के सब पेड़
पर्वत
हवाएं
परिंदे
मेरे साथ रोते थे
हँसते थे
मेरे ही दुःख में
दरिया किनारों पे सर को पटकते थे
मेरी ही खुशियों में
फूलों पे
शबनम के मोती चमकते थे
यहीं
सात तारों के झुरमुट में
लाशक्ल सी
जो खुनक रौशनी थी
वही जुगनुओं की
चरागों की
बिल्ली की आँखों की ताबंदगी थी
नदी मेरे अन्दर से होके गुजरती थी
आकाश!
आँखों का धोका नही था
ये बात उन दिनों की है
जब इस ज़मीन पर
इबादत घरों की जरूरत नही थी
मुझी में
खुदा था!
मेरी बस्ती के सब पेड़
पर्वत
हवाएं
परिंदे
मेरे साथ रोते थे
हँसते थे
मेरे ही दुःख में
दरिया किनारों पे सर को पटकते थे
मेरी ही खुशियों में
फूलों पे
शबनम के मोती चमकते थे
यहीं
सात तारों के झुरमुट में
लाशक्ल सी
जो खुनक रौशनी थी
वही जुगनुओं की
चरागों की
बिल्ली की आँखों की ताबंदगी थी
नदी मेरे अन्दर से होके गुजरती थी
आकाश!
आँखों का धोका नही था
ये बात उन दिनों की है
जब इस ज़मीन पर
इबादत घरों की जरूरत नही थी
मुझी में
खुदा था!
from the collection, khoya huya sa kuch,
published by vani prakashan
published by vani prakashan
1 comment:
Bahut khoob !!
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