तुम बैठे हो, लेकिन जाते देख रहा हूँ,
मैं तनहाई के दिन आते देख रहा हूँ...
आने वाले लम्हे से दिल सहमा है,
तुमको भी डरते घबराते देख रहा हूँ।
कब यादों का ज़ख्म भरे, कब दाग मिटे,
कितने दिन लगते हैं भुलाते देख रहा हूँ॥ :-)
उसकी आँखों में भी काजल फैला है,
मैं भी मुढ के जाते जाते देख रहा हूँ॥
- जावेद अख्तर
the sheer simplicity of this gazal is amazing. written by Javed Sa'b and sung by Jagjit ji. the third 'sher' is my favorite. and yours?
2 comments:
the last one has to be my favorite...
"उसकी आँखों में भी काजल फैला है,
मैं भी मुढ के जाते जाते देख रहा हूँ॥"
simplicity is always closer to perfection if executed precisely.
"उसकी आँखों में भी काजल फैला है,
मैं भी मुड के जाते जाते देख रहा हूँ॥"
last is my fav too
Post a Comment