Thursday, April 15, 2010

देखो, आहिस्ता चलो

देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा
देखना, सोच-संभल कर ज़रा पाँव रखना
ज़ोर से बज उठे न पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो

जाग जायेगा कोई ख्वाब तो मर जायेगा.

- गुलज़ार

3 comments:

Harish said...

badi gehri hai tumhari soch.. :)

shweta Sylvia jani said...

There can no one be like Gulzar Saab. Great post ! Thank you for sharing : )

Neelabh said...

I love this :) I always want to write like gulzar