देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा
देखना, सोच-संभल कर ज़रा पाँव रखना
ज़ोर से बज उठे न पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो
जाग जायेगा कोई ख्वाब तो मर जायेगा.
देखना, सोच-संभल कर ज़रा पाँव रखना
ज़ोर से बज उठे न पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो
जाग जायेगा कोई ख्वाब तो मर जायेगा.
- गुलज़ार
3 comments:
badi gehri hai tumhari soch.. :)
There can no one be like Gulzar Saab. Great post ! Thank you for sharing : )
I love this :) I always want to write like gulzar
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