बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे
खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे
किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला
कटा ज़िन्दगी का सफ़र धीरे-धीरे
जहाँ आप पहुंचे छलांगे लगा कर
वहां मैं भी पहुंचा मगर धीरे-धीरे
पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी
उठाता गया यों ही सर धीरे-धीरे
गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे
-रामदरश मिश्र
श्लाका सम्मान से विभूषित, हिंदी के वरिष्ठ कवि श्री रामदरश मिश्र के 13 काव्य संग्रह, 12 उपन्यास, 14 कहानी संग्रह, एवं कई ललित निबंध संग्रह, यात्रा वर्णन, संस्मरण, आलोचना आदि प्रकाशित हो चुके हैं.
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