Wednesday, April 07, 2010

amrita-imroz


"एक सूरज आसमान पर चढ़ता है, आम सूरज, सारी धरती के लिए, साझे का सूरज, जिसकी रौशनी से धरती पर सब कुछ दिखाई देता है, जिसकी तपिश से सब कुछ जीता है, जन्मता है, और फलता है. लेकिन एक सूरज धरती पर भी उगता है, खास सूरज, एक मन की धरती के लिए. सिर्फ एक मन के लिए, सारे का सारा. इससे एक बात एक रिश्ता बन जाती है, एक ख्याल-एक कृति, और एक सपना-एक हकीकत. इस सूरज का रूप इंसान का होता है. इंसान के कई रूपों की तरह इसके भी कई रूप हो सकते हैं. आम तौर पर यह सूरज एक ही धरती के लिए होता है, लेकिन कभी-कभी आसमान के सूरज की तरह आम भी हो जाता है-सबके लिए-जब यह देवता, गुरु या पैगम्बर के रूप में आता है.

मैंने इस सूरज को पहली बार एक लेखिका के रूप में देखा था, एक शायरा के रूप में. किस्मत कह लो या संजोग, मैंने इसे ढूंढकर अपना लिया- एक औरत के रूप में, एक दोस्त के रूप में, एक आर्टिस्ट के रूप में, और एक महबूबा के रूप में."

- इमरोज़

आज से पैंतालीस साल पहले अमृता-इमरोज़ ने समाज को धता बताकर साथ रहने का फैसला कर लिया था. यह दस्तावेज़ है उनकी ज़ुबानी उनकी कहानी का.


और आज, 7 अप्रैल, 2010 की दोपहर, एक बेहद प्यारे दोस्त ने इन दोनों की साझी जीवनी, 30 किलोमीटर दूर से, मेरी मेज़ तक पहुंचाई, मेरे और मेरे प्यार के नाम :)
आज का दिन, अमृता-इमरोज़ के नाम.

-अमृता इमरोज़, लेखिका- उमा त्रिलोक, प्रकाशक-पेंगुइन.

11 comments:

Surubhi said...

Really beautiful......

baavriviti said...

i love this woman :D

How do we know said...

i LOVE ur posting this here.. tumhare saath saath hum bhi kitaab dubara padh lenge.. :-)

Siddharth said...

Too much hindi gets nostalgic for me, however, just remembered this while i read ur post - नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते फिरते हैं तितलियों की तरह
लव्ज़ कागज़ पे ठहेरते ही नहीं
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम
सादे कागज़ पे लिख के नाम तेरा
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इस से बेहतर भी नज़्म क्या होगी

Rohan... said...

Kya baat..kya baat,,,(pause) kya baat..NICE NICE NICE...

serendipity said...

mujhe to tumhari nazm padhni hai , tumhare shabd
kuch alfaz
jo door tak shaam ki dhund
ki tarah
failte jate hain
aur sapno ki tarah
ek ajab si khoobsoorti ka
ehsaas dila jate hain

Neelabh said...

Is it the story of Amrita Pritam??

delhidreams said...

thanks guys, for ur generous comments.

surubhi, viti: u ll read more from her soon. ab ghalib sahab ki chutti!

howdy: zaroor! main aadhi padh chuka lagta hoon. aur mann nahi kar raha poori padhne ka abhi :)

sid: yeah, gulzar sa'b, in se behtar bhi kaun hoga :)

rohan: :D

neerja: main intezar karunga, is nazm k poore hone ka!

neelabh: the story of amrita and her live-in partner imroz from the eyes n pen of a close friend :)

rahul anand said...

waah waah sir..wat a nice excerpt you have posted..really cool..

rahul anand said...

really awesome bro..loved it.amrita pritam is truly an artist in every sense of the word ..defying society wherever she got the chance :)

Anonymous said...

Absolutely touching :)